Property Right Act: भारतीय समाज में पारिवारिक संपत्ति का बंटवारा लंबे समय से चर्चा और विवाद का विषय रहा है। बेटियों को संपत्ति में समान अधिकार देने की मांग समाज में वर्षों से उठती रही है। हालाँकि, अब यह मांग कानूनी रूप से पूरी होती दिख रही है। वर्ष 2025 में प्रस्तावित नए कानून के तहत, बेटियों को भी पिता की संपत्ति में बेटों के समान अधिकार मिलने की संभावना है। यह बदलाव केवल एक कानूनी संशोधन नहीं है, बल्कि समाज में महिलाओं के अधिकार और सम्मान की दिशा में एक ऐतिहासिक पहल मानी जा रही है।
समान अधिकारों का महत्व
पारिवारिक संपत्ति में बेटियों को समान अधिकार देना न केवल सामाजिक न्याय की दिशा में एक सशक्त कदम है, बल्कि यह महिलाओं की आर्थिक स्वतंत्रता को भी सुनिश्चित करता है। परंपरागत रूप से, भारत में संपत्ति का स्वामित्व अधिकांशतः पुरुषों के पास रहा है। बेटियों को अक्सर यह समझाकर अलग रखा जाता था कि शादी के बाद उन्हें पति की संपत्ति में हिस्सा मिलेगा। लेकिन बदलते समय के साथ, यह सोच अब पुरानी होती जा रही है।
समान अधिकार मिलने से बेटियों को पारिवारिक संपत्ति में हिस्सा मिलेगा, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति मजबूत होगी। महिलाएं अब केवल घरेलू जिम्मेदारियों तक ही सीमित नहीं रहेंगी, बल्कि संपत्ति की मालकिन भी बन सकेंगी। इस आत्मनिर्भरता से उनका आत्मविश्वास बढ़ेगा और समाज में उनका रुतबा भी ऊँचा होगा।
नए कानूनों का असर
2025 में प्रस्तावित नियमों के तहत, बेटियों को पारिवारिक संपत्ति में अपने हिस्से का अधिकार मिलेगा। इसके लिए उन्हें लंबी कानूनी लड़ाई नहीं लड़नी पड़ेगी। कानून में स्पष्ट प्रावधान होगा कि बेटा हो या बेटी, दोनों को बराबर का हिस्सा मिलेगा। इससे समाज में महिला अधिकारों के प्रति जागरूकता बढ़ेगी और बेटियों को भी बराबरी का दर्जा मिलेगा।
इन नियमों के लागू होने से संपत्ति संबंधी विवादों में भी कमी आएगी। पारिवारिक विवाद, जो अक्सर संपत्ति के असमान वितरण के कारण होते हैं, अब कम होंगे। अदालतों का बोझ भी कम होगा और मामलों का निपटारा जल्दी होगा।
संपत्ति विवादों में कमी
वर्तमान में, अदालतों में हजारों ऐसे मामले लंबित हैं जो पारिवारिक संपत्ति के बंटवारे से संबंधित हैं। खासकर ग्रामीण इलाकों में, बेटियाँ संपत्ति से वंचित रह जाती हैं। इस वजह से उन्हें न्याय के लिए सालों तक संघर्ष करना पड़ता है। लेकिन नए नियमों के लागू होने के बाद, संपत्ति संबंधी विवादों में कमी आएगी। इससे न केवल न्याय प्रणाली पर बोझ कम होगा बल्कि परिवारों में शांति और सद्भाव का माहौल भी बनेगा।